लुइस पाश्चर


 लुइस पाश्चर

    सच्ची और प्रेरणा जनक कहानी   


                 

     

                आज मैं , आप लोगों के सामने एक सच्ची और प्रेरणा जनक कहानी बताने जा रहा हूं । आज , मैं एक ऐसे वैज्ञानिक की बात करने जा रहा हूं । जिसने हमारे समाज के लिए हम लोगों के लिए अपने परिवार को कुर्बान किया। यह कहना गलत नहीं होगा , कि शायद उसकी कुर्बानी रंग लाई उनकी कुर्बानियों के कारण आज हम जीवित हैं ।

               यह कहानी है , सन 1822 की फ्रांस के एक गांव में निर्धन व्यापारी जो कि अपने मन में तमन्ना लेकर काम कर रहा था । वह भी काम ऐसा जो कि गंदे चमड़े को उतारता था,  और इस तरह के काम करने के बाद वह सोचता था कि, काश मैं पढ़ लिख लेता तो, मुझे यह काम ना करना पड़ता और इन गंदे चमड़े के साथ नहीं रहना पड़ता और , कहानी शुरू होती है फ्रांस के एक छोटे से गांव से यह 1822 में फ्रांस के गांव में काम करता व्यापारी था । इस तरह उसकी जिंदगी चलती जा रही थी और , इन दिनों में ही उसके घर में एक बालक ने जन्म लिया और जिसका नाम रखा गया लुइस पाश्चर इस बालक के जन्म लेते ही उनके मन में खुशी की लहर दौड़ उठी और ,वह सोचने लगे कि, मैं तो पढ़ नहीं सका लेकिन , मैं अपने लड़के को बहुत अच्छे स्कूल में पढ़ाऊंगा , और उसे एक अच्छा नागरिक बनाऊंगा । इस उम्मीद के साथ  उन्होंने अपने लड़के को एक अच्छे स्कूल में एडमिशन करवाया । पर यह जान के लुइस पाश्चर के पिता को बहुत दुख हुआ कि उनका लड़का लुइस पाश्चर पढ़ने में बिल्कुल होशियार ना था । यह जानकर उनको बहुत ही बड़ा सदमा लगा लेकिन , यह कहना गलत ना होगा कि लुइस पाश्चर बहुत ज्यादा मेहनती थे । इस तरह से दौर और समय बीतता गया । एक बार उन्हीं के गांव में एक पागल भेड़िया आया और , उस पागल भेड़िया ने उस गांव के आठ नागरिकों को काट लिया ।  उस भेड़िया के काटे जाने के कारण 8 नागरिकों में से 5 नागरिकों  रेबीज के शिकार होते ही चंद दिनों में अपनी जान को त्याग दिया और इस तरह से यह देखकर लुइस पाश्चर का दिमाग हिल गया । लुइस पाश्चर हमेशा अपने पिता से पूछते पिताजी हम इन्हें कैसे ठीक करेंगे ।  यह सुनते ही उनके पिताजी एक दिन गुस्से में बोले अगर तू इन्हें ठीक करना चाहता है तो , अच्छे तरीके से पढ़ाई कर और कोई नई खोज कर जिससे इन्हें बचाया जा सके । यह सुनते ही उन्हें एक सदमा लगा । वह दिल लगाकर पढ़ने लगे आने वाले कुछ समय में यह देखते ही लुइस पाश्चर के पिता यह देखकर हैरान हुए । उनके लड़के लुइस पाश्चर पढ़ाई में काफी ज्यादा मन लगाकर पढ़ रहे हैं।  यह देखकर उन्हें बहुत ज्यादा खुशी हुई। इस तरह से कुछ टाइम बाद लुइस पाश्चर ने अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी  कर ली। उन्हें उनके मेहनत के बदौलत देखते हुए ।उनके पिता ने उनको पेरिस भेज दिया। पेरिस भेजने पर उनके पिता को कुछ कर्ज भी उठाना पड़ा। वह पीछे ना  हटे। लुइस पाश्चर के पिता ने अपने लड़के लुइस पाश्चर को पढ़ाने के लिए कर्ज उठाया  और  पेरिस भेजा। पेरिस जाकर उन्होंने काफी अच्छी विद्या प्राप्त की उन्होंने रसायन , भौतिक और जीव विज्ञान में काफी ज्यादा ज्ञान अर्जित किया । ज्ञान अर्जित करते ही वह सन 1842 में विश्वविद्यालय में पढ़ाना शुरू किया। पढ़ाते समय  ही कुछ रिसर्च पर ध्यान देते थे। उन्होंने अपने ज्ञान को और भी ज्यादा अर्जित करते हुए यह जाना कि हर एक चीज में कुछ ना कुछ जीवाणु होते हैं । उस टाइम तक जीवाणु के बारे में किसी ने भी पता नहीं किया था । लेकिन उन्होंने यह देखा कि हर एक खाने वाली चीज में छोटे-छोटे कुछ  जीवाणु  होते हैं ।

                      जिन्हें  हम इन नंगी आंखों से नहीं देख सकते हैं , और इसे देखने के लिए हमें किसी इंस्ट्रूमेंट की जरूरत होती है और उस इंस्ट्रूमेंट का नाम था माइक्रोस्कोप और इस परिभाषा को  जीवाणु की परिभाषा का नाम दिया गया । 

                   इस तरह से उनकी इस चीजों को देखते हुए उन्होंने यह साबित किया कि खाने वाली हर चीज में कुछ ना कुछ छोटे जीवाणु होते हैं । इस तरह से उन्होंने अंदाजा लगाया कि अगर यह जीवाणु हमारे खाने की हर चीजों में है तो हो सकता है कि यही जीवाणु हमारे शरीर के अंदर भी मौजूद हो इस तरह से उन्होंने हमारे शरीर के अंदर भी इस चीज के बारे में पता लगाया , लेकिन  उन्होंने यह चीज देखा कि यह जीवाणु अगर ज्यादा हो तो कुछ टाइम बाद हमारे खाने वाली चीजों को खराब कर देते हैं । लेकिन उन्होंने इस चीज को देखते हुए ।

                    एक पाश्चराइजेशन टेक्निक को निर्धारित किया । जिसे पाश्चराइजेशन टेक्निक ऑफ लुइस पाश्चर के नाम से जाना जाता है। पाश्चराइजेशन तकनीक को उन्होंने ( सबसे पहले दूध पर पाश्चराइजेेेशन तकनीक को यूज़ किया )  दूध को गर्म करते हुए किया था तो मैं थोड़ा सा आपको पाश्चराइजेशन तकनीक के बारे में बताना चाहूंगा पाश्चराइजेशन टेक्निक में लुइस पाश्चर ने दूध को 75 डिग्री सेंटीग्रेड पर गर्म किया और इस तरह से गर्म करने पर फिर दूध को ठंडा किया , और ठंडा करने के बाद देखा कि जो जीवाणु दूध में मौजूद थे । वह मर गए और दूध काफी समय तक खराब नहीं हुआ , तो इस तरह की टेक्निक दूध को गर्म करने और उसके बाद ठंडा करके रखने से जो दूध ना खराब हुआ । इस तकनीक को ही पाश्चराइजेशन टेक्निक कहा जाने लगा ।

                   अब बात थी , उनके दिमाग में बचपन से घर कर रही  थी। इसके बारे में वह नहीं   जानते थे की भेड़िया या जानवर के काटने से क्या होता है , लेकिन उन्होंने कुछ मेहनत के बाद यह जाना कि जानवर जब काटता है या जानवर जब पागल हो जाता है तो उसके शरीर में एक नाम का जीवाणु आता होगा। इस तरह से उनके रिसर्च के जरिए उन्होंने 1885 मैं रेबीज वैक्सीन की खोज की और इस तरह से रेबीज वैक्सीन की खोज करते ही उनको एक बहुत बड़ी उपलब्धि मिली लेकिन उनके इस रेबीज वैक्सीन की खोज करते ही उनकी वाइफ उन्हें छोड़कर चली गई  । इसका मुख्य कारण यह था , कि वह अपनी इस खोज में लगे रहे , और परिवार पर बिल्कुल भी ध्यान ना देते थे । इस परिवार के ध्यान ना देने के कारण उनकी पत्नी उनको छोड़कर चली गई । और उनकी 3 लड़कियां थी और कुछ समय बाद जब वह रेबीज वैक्सीन की खोज कर चुके थे । तो उनकी वाइफ उनसे मिलने आई उनकी वाइफ जब उनसे मिलने आई ,  तो उनकी तीन बेटियों में से दो बेटियां ब्रेन हेमरेज के कारण खत्म हो चुकी थी । और एक बेटी टाइफाइड के कारण खत्म हो चुकी थी । इस तरह उनके अपने परिवार पर ध्यान ना देने के कारण उनका पूरा परिवार धीरे-धीरे बेटियों के साथ खत्म हो गया । अब उनकी पत्नी जो उनके साथ रहना चाहती थी  । 

                    लेकिन उन्होंने अपने जीवन को समाज के और विज्ञान के लिए समर्पित कर दिया । इस तरह से वह समाज के लिए उन्होंने बहुत सारी उपलब्धियां प्राप्त की लुइस पाश्चर जी के लिए कहना यह गलत नहीं होगा कि , वह एक महान वैज्ञानिक थे ।महान वैज्ञानिक के साथ उन्होंने अपने परिवार को त्याग दिया । उन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के लिए और विज्ञान के लिए समर्पित किया इस तरह से  1895 में लुइस पाश्चर जी ने 73 साल की उम्र में इस संसार को अलविदा कह दिया ।

                    उम्मीद करता हूं , आपको इस ब्लॉग से बहुत कुछ नया सीखने को मिला होगा । यह कहना गलत नहीं होगा कि , लुइस पाश्चर एक महान वैज्ञानिक थे । अगर आपको इस ब्लॉग से कुछ सीखने को मिला हो तो कमेंट में जरूर बताएं।

 आपका दिन मंगलमय हो।

 धन्यवाद।


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